टिकट वितरण में गहलोत-पायलट की नहीं चलेगी मनमर्जी, चलेगा आलाकमान का ये फॉर्मूला


गणेश कुमार स्वामी   2023-09-13 07:28:33



कांग्रेस ने राजस्थान में पिछली बार की गलतियों से सबक लेते हुए इस बार के विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण का फॉर्मूला बदल दिया है। रिवाज पलटने की कोशिशों में लगी पार्टी इस बार 65 से 70 फीसदी नए चेहरों को टिकट देने की कोशिश में है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने इसे लेकर तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी की बनाई गईं समितियां हर सीट पर उम्मीदवारों के चयन में बारीकी से हार-जीत के आकलन में लगी हुई हैं।

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के सूत्रों ने अमर उजाला को बताया कि पार्टी के कई आंतरिक सर्वे में आधे विधायक और मंत्रियों की स्थिति कमजोर मिली है। इसी कारण सीएम अशोक गहलोत और प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा बार-बार जिताऊ उम्मीदवारों को ही चुनाव में टिकट देने की बात कहते और बड़े नेताओं के भी टिकट कटने के संकेत देते हुए नजर आ रहे हैं। पार्टी ने तय किया है कि इस चुनाव में पचास फीसदी चेहरे युवा होंगे और इनमें भी महिलाओं की भागीदारी प्रमुखता से होगी। कुछ सीटों पर सत्ता विरोधी लहर को खत्म करने के लिए पार्टी चेहरों में बदलाव भी करेगी। जहां एक ही व्यक्ति या एक ही परिवार को हर चुनाव में टिकट मिलता आ रहा है या जो लोग दो बार चुनाव हार चुके हैं, ऐसे लोगों को टिकट मिलने की संभावना इस बार बहुत कम है।

राजस्थान में टिकट के लिए कांग्रेस ने तय किए ये मापदंड

जिस सीट पर लगातार एक ही परिवार को टिकट मिलता रहा है, अब वहां नए लोगों को मौका मिलेगा। 

पार्टी 50 फीसदी युवाओं को टिकट देने और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर कर रही है विचार।

लगातार दो बार चुनाव हारने वाले लोगों को नहीं मिलेगा टिकट।

टिकट वितरण में सर्वे को तवज्जो दी जाएगी। टिकट में नेताओं की सिफारिशें काम नहीं आएंगी।

भ्रष्टाचार के आरोपों और विवादों से घिरे नेताओं को टिकट नहीं मिलेगा।

कमजोर सीटों पर पार्टी सेलिब्रिटीज और खिलाड़ियों को मौका दे सकती है।

मंत्री रहकर चुनाव लडने वाले ज्यादातर नेता फिर से जीत नहीं पाते हैं, इसलिए इनकी जगह से नए चेहरो को मौका मिलना चाहिए।

लगातार हारी हुईं सीटें बन रही हैं चुनौती

2018 के चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण में सामने आता है कि पार्टी के लिए 93 सीटें बहुत ही चुनौतीपूर्ण हैं। इनमें से करीब 52 ऐसी सीटें हैं, जहां पार्टी लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार रही है। जबकि 41 ऐसी सीट हैं जहां 2008 में पार्टी जीती, लेकिन 2013 और 2018 में पार्टी हार गई। पार्टी इन सीटों पर नए चेहरों को मौका देने पर विचार कर रही है। कमजोर सीटों पर पार्टी सेलिब्रिटीज और खिलाड़ियों को मौका दे सकती है। इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय और लोकप्रिय चेहरे भी यहां से चुनाव लड़ाए जा सकते हैं।

कांग्रेस को सबसे बड़ी दिक्कत ऐसी सीटों पर है, जहां पार्टी लगातार तीन बार से हार रही है। करीब 52 ऐसी सीटें हैं, जहां पार्टी तीन बार से ज्यादा हार रही है। इन सीटों पर उम्मीदवार चयन करने के लिए पार्टी को ज्यादा जोर लगाना पड़ रहा है। इन सीटों पर ऑब्जर्वर और स्क्रीनिंग कमेटी को भी जिताऊ उम्मीदवार तय करने में ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है। कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां पार्टी 2008 में जीती, लेकिन 2013 और 2018 में हार गई। पार्टी इन सीटों पर भी अध्ययन कर रही है। 41 सीटों पर कांग्रेस जातीय समीकरणों को फोकस करते हुए अलग से सर्वे कर रही है। ये सीटें ऐसी हैं जहां पार्टी 2008 में जीती थी, लेकिन इसके बाद लगातार हारती गई। यहां जातीय समीकरण साधने के साथ युवा चेहरों पर पार्टी फोकस कर रही है, ताकि 2008 का इतिहास दोहराया जा सके।

मंत्रियों के भी कट सकते हैं टिकट

2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए 105 उम्मीदवारों को दोबारा मौका दिया था। इनमें से 92 उम्मीदवार हार गए थे। 2013 के चुनाव में गहलोत मंत्रिमंडल में शामिल रहे, 31 मंत्री सीट नहीं बचा पाए थे। हारने वाले मंत्रियों में डॉ. जितेंद्र सिंह, राजेंद्र पारीक, हेमाराम और हरजीराम बुरड़क, दुर्रु मियां, भरतसिंह, बीना काक, शांति धारीवाल, भंवरलाल मेघवाल, ब्रजकिशोर शर्मा, परसादीलाल, जैसे दिग्गज नेता शामिल थे। जबकि साल 2003 के चुनाव में सत्ता के खिलाफ जनता में पनपी नाराजगी के कारण गहलोत मंत्रिमंडल के 18 मंत्री हार गए थे। पार्टी का मानना है, कि मंत्री रहकर चुनाव लडने वाले ज्यादातर नेता फिर से नहीं जीत पाते हैं इसलिए उनकी जगह से नए चेहरों को मौका मिलना चाहिए।