आदित्य-एल1 लैग्रेंजियन बिंदु से करेगा सूर्य का अध्ययन


गणेश कुमार स्वामी   2023-08-31 08:26:50



चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक सफलता के बाद इसरो सूर्य मिशन के लिए तैयार है। दो सितंबर को श्रीहरिकोटा से आदित्य-एल 1 लॉन्च किया जाएगा। इस मिशन का उद्देश्य सूर्य का अध्ययन करना है। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद अब दुनिया की नजर आदित्य-एल1 मिशन पर होगी। मिशन को लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) पर भेजा जाना है। 

आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला मिशन है। इसके साथ ही इसरो ने इसे पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन कहा है। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी दूर है। 

आदित्य एल-1 सौर कोरोना (सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग) की बनावट और इसके तपने की प्रक्रिया, इसके तापमान, सौर विस्फोट और सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन (सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं) की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा।

सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित भारतीय वेधशाला आदित्य-L1 का प्रक्षेपण दो सितंबर को किया जाएगा। इसके लिए सुबह 11:50 बजे का समय तय किया गया है। श्रीहरिकोटा से इसका प्रक्षेपण किया जाएगा। भारत का आदित्य एल1 अभियान सूर्य की अदृश्य किरणों और सौर विस्फोट से निकली ऊर्जा के रहस्य सुलझाएगा।

इससे पहले इसरो ने आदित्य- एल1 से लैस लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी-सी57 की तस्वीरें साझा की। लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी-सी57 को श्रीहरिकोटा के लॉन्च पैड पर पहुंचा दिया गया है। 

आदित्य एल-1 को लैंग्रेंजियन बिन्दु 1 (एल1) तक पहुंचने में करीब चार महीने का समय लगेगा। इस दौरान यह 15 लाख किलोमीटर का सफर तय करेगा। चंद्रयान-3 की तरह यह भी अलग-अलग कक्षा से गुजरकर अपने गंतव्य तक पहुंचेगा। यानी, आदित्य एल-1 को भी सीधे नहीं भेजा जाएगा। 

जिस लैग्रेंजियन बिंदु पर मिशन भेजा जाना है, वह क्या है? 

लैग्रेंजियन बिंदु अंतरिक्ष में वह स्थान होते हैं जहां दो वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले सभी गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे को निष्प्रभावी कर देते हैं। लैग्रेंजियन बिंदु में एक छोटी वस्तु दो बड़े पिंडों (सूर्य और पृथ्वी) के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के तहत संतुलन में रह सकती है। इस वजह से एल1 बिंदु का उपयोग अंतरिक्ष यान के उड़ने के लिए किया जा सकता है।

अंतरिक्ष में पांच लैग्रेंजियन बिंदु हैं जिन्हें L1, L2, L3, L4 और L5 के रूप में परिभाषित किया गया है। L1, L2 और L3 बिंदु सूर्य और पृथ्वी के केंद्रों को जोड़ने वाली रेखा पर स्थित हैं। वहीं L4 और L5 बिंदु दोनों बड़े पिंडों के केंद्रों के साथ दो समबाहु त्रिभुजों के शीर्ष बनाते हैं।

L1 बिंदु दो बड़े पिंडों के बीच स्थित है, जहां दोनों पिंडों का गुरुत्वाकर्षण बल बराबर और विपरीत है। यही वह बिंदु होगा जहां आदित्य एल1 मिशन को रखा जाएगा। L2 बिंदु छोटे पिंड से परे स्थित है, जहां छोटे पिंड का गुरुत्वाकर्षण बल बड़े पिंड के कुछ बल को निष्प्रभावी कर देता है। L3 बिंदु छोटे पिंड के विपरीत, बड़े पिंड के पीछे स्थित होता है। वहीं, L4 और L5 बिंदु बड़े पिंड के चारों ओर उसकी कक्षा में छोटे पिंड से 60 डिग्री आगे और पीछे स्थित होते हैं।

लैग्रेंजियन बिंदु अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए उपयोगी हैं क्योंकि यहां कम ऊर्जा वाली कक्षाएं होती हैं। इसके साथ ही इस बिंदु से अंतरिक्ष के कुछ क्षेत्रों को निर्बाध रूप से देखा जा सकता है। सूर्य-पृथ्वी प्रणाली का L1 बिंदु एक अंतरिक्ष यान को लगातार सूर्य का निरीक्षण करने की अनुमति देता है। दूसरी ओर सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के L2 बिंदु से दूरबीनों के जरिए गहरे स्थान का स्पष्ट दृश्य दिखाई देता है। L4 और L5 बिंदु पर ट्रोजन क्षुद्रग्रह होते हैं जो सूर्य के चारों ओर एक ग्रह की कक्षा को साझा करते हैं। 

सूर्य कई ऊर्जावान कणों और चुंबकीय क्षेत्र के साथ लगभग सभी तरंग दैर्ध्य में विकिरण या प्रकाश छोड़ता है। हमारी पृथ्वी का वायुमंडल और उसका चुंबकीय क्षेत्र एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है। पृथ्वी ही कणों और क्षेत्रों सहित कई हानिकारक तरंग दैर्ध्य विकिरणों को रोकती है। 

चूंकि कई विकिरण पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुंच पाते हैं इसलिए पृथ्वी के उपकरण ऐसे विकिरण का पता नहीं लगा पाएंगे। इसी वजह से इन विकिरणों पर आधारित सौर अध्ययन भी नहीं किए जा सकते। हालांकि ऐसे अध्ययन पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर यानी अंतरिक्ष से अवलोकन करके किए जा सकते हैं। इसी प्रकार एक सवाल उठता है कि सूर्य से निकलने वाले वायु के कण और चुंबकीय क्षेत्र ग्रहों के बीच अंतरिक्ष से कैसे यात्रा करते हैं? इसे समझने के लिए एक ऐसे बिंदु से अध्ययन किया जाना चाहिए जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव से बहुत दूर है।