नवरात्री विशेष - यहां 9 रूप में होते हैं माता के दर्शन, जगतपिता ब्रह्मा ने की थी नव दुर्गा की आराधना


गणेश कुमार स्वामी   2024-04-10 10:03:05



देशभर में माता के 52 शक्तिपीठ हैं। इनके अलावा असंख्य माता के मंदिर हैं, जो जन आस्था के केंद्र हैं। माता के हर प्राचीन मंदिर की अपनी महिमा है। वहीं, अजमेर में एक ऐसा मंदिर है, जहां माता 9 रूपों में सदियों से विराजमान हैं। पुष्कर घाटी पर नवदुर्गा माता का धाम है। 9 सिर होने के कारण ये नौसर माता के नाम से विख्यात हैं। घाटी पर स्थित नौसर माता का यह मंदिर अति प्राचीन है। पद्म पुराण में माता के इस पवित्र धाम का उल्लेख है। इसके मुताबिक माता के धाम का संबंध जगत पिता ब्रह्मा के सृष्टि यज्ञ से भी पहले से है। सृष्टि यज्ञ की रक्षा के लिए जगतपिता ब्रह्मा ने नवदुर्गा की आराधना करके उनका आह्वान किया था। शक्ति स्वरूपा माता अपने 9 रूपों के साथ पुष्कर की नाग पहाड़ी के मुख पर विराजमान हो गईं थीं। नौसर माता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर की आज भी रक्षा करती हैं। नौसर माता का यह पवित्र स्थान भक्तों के लिए हमेशा से आस्था का केंद्र रहा है। खासकर नवरात्रि पर यहां मेले जैसा माहौल रहता है। दूर-दूर से भक्त माता के दर्शन और पूजा अर्चना के लिए आते हैं।

नौसर माता मंदिर के पीठाधीश्वर रामा कृष्ण देव बताते हैं कि चट्टान के नीचे मंदिर में माता एक शरीर में 9 मुख को धारण किए हुए हैं। उन्होंने दावा किया कि माता का ऐसा अद्भुत मंदिर देश ही नहीं विश्व में और कहीं नहीं है। उन्होंने बताया कि पुष्कर में जब सृष्टि यज्ञ किया जाना था तो उससे पहले नकारात्मक शक्तियों से यज्ञ की रक्षा के लिए जगतपिता ब्रह्मा ने शक्ति स्वरूपा नवदुर्गा की यहां आराधना की थी। यहां नव दुर्गा माता का प्रादुर्भाव सृष्टि यज्ञ के पहले से जुड़ा है। यह अति प्राचीन माता का पवित्र धाम जन आस्था का बड़ा केंद्र है।

रामा कृष्ण देव बताते हैं कि चट्टान के नीचे विराजित नवदुर्गा माता के 9 सिर हैं। यह सभी नवदुर्गा के रूप हैं। मंदिर में विराजमान माता की प्रतिमा के मुख पाषण के नहीं हैं। यह मिट्टी के बने हुए हैं, जो अपने आप में अद्भुत रहस्य है। कई युग बीत जाने के बाद भी माता की प्रतिमा पर समय का कोई ज्यादा असर नहीं पड़ा है।

पीठाधीश्वर रामा कृष्ण देव बताते है कि मुगल काल में औरंगजेब और उसकी सेना हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर रही थी, तब माता के इस पवित्र धाम को भी नुकसान पहुंचाने का उसकी सेना ने प्रयास किया था। मंदिर के एक हिस्से को औरंगजेब की सेना ने तोड़ दिया, लेकिन माता के नौ स्वरूप वाली प्रतिमा को औरंगजेब की सेना नुकसान नहीं पहुंचा पाई थी। इस हमले में माता की एक प्रतिमा को मामूली नुकसान पहुंचा था। इस हमले के बाद जब अजमेर में मराठाओं का शासन रहा, तब मंदिर की पुनः स्थापना हुई। इसके बाद रखरखाव के अभाव में मंदिर जीर्ण शीर्ण होता चला गया।

वह बताते हैं कि 145 वर्ष पहले माता के जीर्णशीर्ण मंदिर का संत बुधकरण महाराज ने जीर्णोद्धार करवाया था, लेकिन यह उनके लिए भी इतना आसान नहीं था। दरअसल, जीर्णोद्धार के लिए नोसर पहाड़ी के पास कोई जल का स्त्रोत नहीं था। ऐसे में संत बुद्ध कारण महाराज ने निराश होकर माता से प्रार्थना की। तब माता ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर मंदिर के निकट जल के स्त्रोत के बारे में बताया। स्वप्न में संत को माता ने बताया कि मंदिर के नीचे की ओर विशाल पत्थर है, जिसको हटाने पर पर्याप्त जल मिलेगा। संत बुधकरण ने माता के आदेश से उस विशाल पत्थर को लोगों के सहयोग से हटवा दिया। पत्थर के नीचे पानी से भरा कुंड निकला। वह कुंड आज भी मौजूद है। मान्यता है कि इस कुंड का जल कभी नहीं सूखता। संत बुधकरण के बाद संत ओमा कुमारी और उनके बाद उनके शिष्य रामा कृष्ण देव मंदिर के पीठाधीश्वर हैं। विगत 5 वर्षों में मंदिर का कायाकल्प हो चुका है।

पीठाधीश्वर रामा कृष्ण देव बताते है कि 11वीं शताब्दी में पहली बार जब सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी से तराइन का युद्ध किया था। इससे पहले पृथ्वीराज चौहान ने राज कवि चंद्रवरदाई के साथ यहाँ माता की आराधना कर विजय का आशीर्वाद लिया था। पहले इस युद्ध में सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को हराया था।

वह बताते हैं कि पद्म पुराण के अनुसार सतयुग में पुष्कर अरण्य क्षेत्र में ब्रह्मा ने यज्ञ की रक्षा के लिए नागराज की जिव्हा पर नव शक्तियों को स्थापित किया था। पुष्कर की नाग पहाड़ी को नाग का ही स्वरूप माना जाता है। उनके अनुसार यह बताया जाता है कि द्वापर युग में वनवास काल में पांडवों ने भी कुछ समय नाग पहाड़ी पर बिताया था। यहां रहते पांडवों ने भगवान शिव के साथ-साथ नव दुर्गा की आराधना भी की थी। नाग पहाड़ी पर पाडंवों ने पाण्डेश्वर महादेव की भी स्थापना की थी, जो आज भी मौजूद है। बाद में पांडवों ने पुष्कर में नाग पहाड़ी की तलहटी में पंचकुंड का निर्माण करवाया जो आज भी 5 पांडवों के नाम से जाना जाता है।

पीठाधीश्वर रामा कृष्ण देव बताते है कि देश के कोने-कोने से माता के दर्शनों के लिए लोग अजमेर आते हैं। नवदुर्गा नौसर माता कई जातियों की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। माहेश्वरी समाज के कई गोत्र, गुर्जर समाज के कई गोत्र, कुम्हार जाति, तेली, धोबी, ब्राह्मण, मीणा जाति के अनेक गोत्र की कुलदेवी नौसर माता हैं। मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है और माता अपने भक्तों की रक्षा जरूर करती हैं। नवरात्रा में माता के दरबार में भक्तों का मेला लगा रहता है। पीठाधीश्वर रामा कृष्ण देव ने बताया कि यू तो मंदिर में धार्मिक उत्सव का आयोजन होता रहता है, लेकिन नवरात्रि में विशेष आयोजन होते हैं।

उन्होंने बताया, कि माता का नित्य श्रृंगार होता है और आरती शाम को होती है। नवरात्र के 9 दिन माता को अन्न  से बने हुए व्यंजन का भोग नहीं लगता। केवल दूध से बने मिष्ठान और फल का भोग माता को अर्पित किया जाता है। इसी तरह नवरात्र में पूरा नारियल ही चढ़ता है। उन्होंने यह भी बताया कि नवमी और अष्टमी के दिन विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं। अष्टमी के दिन 12 बजे महाआरती होगी। माता को 1100 किलो खीचडा और हलवे का भोग लगाया जाएगा। इसके बाद भक्तों में प्रसाद का वितरण होगा।