आदित्य-एल1 मिशन की सफलता का पहला सबूत


गणेश कुमार स्वामी   2023-12-09 01:02:16



आदित्य-एल1 मिशन की सफलता का पहला सबूत मिल गया है। इस सैटेलाइट के सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप (SUIT) ने सूरज की पहली बार फुल डिस्क तस्वीरें ली हैं। ये सभी तस्वीरें 200 से 400 नैनोमीटर वेवलेंथ की है। यानी आपको सूरज 11 अलग-अलग रंगों में दिखाई दे रहा है।

Aditya-L1 के SUIT पेलोड को 20 नवंबर 2023 को ऑन किया गया था। इस टेलिस्कोप ने सूरज के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें ली हैं। फोटोस्फेयर मतलब सूरज की सतह और क्रोमोस्फेयर यानी सूरज की सतह और बाहरी वायुमंडल कोरोना के बीच मौजूद पतली परत। क्रोमोस्फेयर सूरज की सतह से 2000 किलोमीटर ऊपर तक होती है।   

इससे पहले सूरज की तस्वीर 6 दिसंबर 2023 को ली गई थी। लेकिन वह पहली लाइट साइंस इमेज थी। लेकिन इस बार फुल डिस्क इमेज ली गई है। यानी सूरज का जो हिस्सा पूरी तरह से सामने है, उसकी फोटो। इन तस्वीरों में सूरज पर मौजूद धब्बे, प्लेग और सूरज के शांत पड़े हिस्से दिख रहे हैं। इन तस्वीरों की मदद से वैज्ञानिक सूरज की स्टडी गहनता से कर पाएंगे।

इन संस्थानों ने मिलकर बनाया है SUIT 

SUIT को पुणे के इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA), मनिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (MAHE), सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन स्पेस साइंस इंडियन (CESSI), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, उदयपुर सोलर ऑब्जरवेटरी, तेजपुर यूनिवर्सिटी और ISRO के वैज्ञानिकों ने मिलकर बनाया है।

सूरज की स्टडी क्यों... क्यों जरूरी है ये मिशन?   

- सूरज हमारा तारा है। उससे ही हमारे सौर मंडल को ऊर्जा यानी एनर्जी मिलती है।  

- इसकी उम्र करीब 450 करोड़ साल मानी जाती है। बिना सौर ऊर्जा के धरती पर जीवन संभव नहीं है। 

- सूरज की ग्रैविटी की वजह से ही इस सौर मंडल में सभी ग्रह टिके हैं।  

- सूरज का केंद्र यानी कोर में न्यूक्लियर फ्यूजन होता है। इसलिए सूरज चारों तरफ आग उगलता हुआ दिखता है।  

- सूरज की स्टडी इसलिए जरुरी जिस से उसकी बदौलत सौर मंडल के बाकी ग्रहों का भी गहनता से अध्ययन किया जा सके।   

- सूरज की वजह से लगातार धरती पर रेडिएशन, गर्मी, मैग्नेटिक फील्ड और चार्ज्ड पार्टिकल्स का बहाव आता है। इसी बहाव को सौर हवा या सोलर विंड कहते हैं। ये उच्च ऊर्जा वाली प्रोटोन्स से बने होते हैं। 

- सोलर मैग्नेटिक फील्ड का पता चलता है। जो कि बेहद विस्फोटक होता है।  

- कोरोनल मास इजेक्शन (CME) की वजह से आने वाले सौर तूफान से धरती को कई तरह के नुकसान की आशंका रहती है। 

इसलिए अंतरिक्ष के मौसम को जानना  जरूरी है। यह मौसम सूरज की वजह से ही बनता और बिगड़ता है।

क्या है लैग्रेंजियन प्वाइंट?   

लैग्रेंजियन प्वाइंट, यानी L, यह नाम गणितज्ञ जोसेफी-लुई लाग्रेंज के नाम पर दिया गया है. इन्होंने ही इन लैग्रेंजियन प्वाइंट्स को खोजा था. जब किसी दो घूमते हुए अंतरिक्षीय वस्तुओं के बीच ग्रैविटी का एक ऐसा प्वाइंट आता है, जहां पर कोई भी वस्तु या सैटेलाइट दोनों ग्रहों या तारों की गुरुत्वाकर्षण से बचा रहता है उसे लैग्रेंजियन पॉइंट कहा जाता है।    

आदित्य-L1 लैग्रेंजियन प्वाइंट L1 पर यह धरती और सूरज दोनों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बचा रहेगा। लॉन्च के बाद आदित्य 16 दिनों तक धरती के चारों तरफ चक्कर लगाएगा। इस दौरान पांच बार ऑर्बिट बदला जाएगा। ताकि सही गति मिले। फिर आदित्य का ट्रांस-लैग्रेंजियन 1 इंसर्शन होगा। यहां से शुरू होगी 109 दिन की लंबी यात्रा। जैसे ही आदित्य-L1 अपने निर्धारित स्थान L1 पर पहुंचेगा, वह वहां पर एक ऑर्बिट मैन्यूवर करेगा। ताकि L1 प्वाइंट के चारों तरफ चक्कर लगा सके।

आदित्य-L1 क्या है?   

Aditya-L1 भारत की पहली अंतरिक्ष आधारित ऑब्जरवेटरी है। यह सूरज से इतनी दूर तैनात होगा कि उसे गर्मी तो लगे लेकिन खराब न हो। क्योंकि सूरज की सतह से थोड़ा ऊपर यानी फोटोस्फेयर का तापमान करीब 5500 डिग्री सेल्सियस रहता है। केंद्र का तापमान 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस रहता है। ऐसे में किसी यान या स्पेसक्राफ्ट का वहां जाना संभव नहीं है।

क्या करेगा आदित्य-L1 स्पेस्क्राफ्ट?  

- सौर तूफानों के आने की वजह, सौर लहरों और उनका धरती के वायुमंडल पर क्या असर होता है? इसकी स्टडी करेगा।  

- आदित्य सूरज के कोरोना से निकलने वाली गर्मी और गर्म हवाओं की स्टडी करेगा।  

- सौर हवाओं के विभाजन और तापमान की स्टडी करेगा।  

- सौर वायुमंडल को समझने का प्रयास करेगा।  

कौन-कौन से पेलोड्स जा रहे हैं आदित्य के साथ?   

PAPA यानी प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य ... 

यह सूरज की गर्म हवाओं में मौजूद इलेक्ट्रॉन्स और भारी आयन की दिशाओं और उनकी स्टडी करेगा। कितनी गर्मी है इन हवाओं में इसका पता करेगा। साथ ही चार्ज्ड कणों यानी आयंस के वजन का भी पता करेगा।

VELC यानी  विजिबल लाइन एमिसन कोरोनाग्राफ... 

इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ने बनाया है। सूर्ययान में लगा VELC सूरज की HD फोटो लेगा। इस स्पेसक्राफ्ट को PSLV रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। इस पेलोड में लगा कैमरा सूरज के हाई रेजोल्यूशन तस्वीरे लेगा। साथ ही स्पेक्ट्रोस्कोपी और पोलैरीमेट्री भी करेगा।    

SUIT यानी सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलिस्कोप... 

यह एक अल्ट्रावायलेट टेलिस्कोप है। यह सूरज की अल्ट्रावायलेट वेवलेंथ की तस्वीरे लेगा। साथ ही सूरज के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें लेगा। यानी नैरो और ब्रॉडबैंड इमेजिंग होगी।

SoLEXS यानी सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर... 

सूरज से निकलने वाले एक्स-रे और उसमें आने वाले बदलावों की स्टडी करेगा। साथ ही सूरज से निकलने वाली सौर लहरों का भी अध्ययन करेगा।

हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS)... 

यह एक हार्ड एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है। यह हार्ड एक्स-रे किरणों की स्टडी करेगा। यानी सौर लहरों से निकलने वाले हाई-एनर्जी एक्स-रे का अध्ययन करेगा।

ASPEX यानी आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट... 

इसमें दो सब-पेलोड्स हैं। पहला SWIS यानी सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर जो कम ऊर्जा वाला स्पेक्ट्रोमीटर है। यह सूरज की हवाओं में आने वाले प्रोटोन्स और अल्फा पार्टिकल्स की स्टडी करेगा। दूसरा STEPS यानी सुपरथर्म एंड एनर्जेटिक पार्टिकल स्पेक्ट्रोमीटर। यह सौर हवाओं में आने वाले ज्यादा ऊर्जा वाले आयंस की स्टडी करेगा।   

MAG यानी एडवांस्ड ट्राई-एक्सियल हाई रेजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर्स... 

यह सूरज के चारों तरफ मैग्नेटिक फील्ड की स्टडी करेगा। साथ ही धरती और सूरज के बीच मौजूद कम तीव्रता वाली मैग्नेटिक फील्ड की भी स्टडी करेगा। इसमें दो मैग्नेटिक सेंसर्स को दो सेट हैं। ये सूर्ययान के मुख्य शरीर से तीन मीटर आगे निकले रहेंगे।